लेखनी कविता - शुमार-ए सुबह मरग़ूब-ए बुत-ए-मुश्किल पसंद आया - ग़ालिब
शुमार-ए सुबह मरग़ूब-ए बुत-ए-मुश्किल पसंद आया / ग़ालिब
शुमार-ए सुबह मरग़ूब-ए बुत-ए-मुश्किल पसंद आया
तमाशा-ए बयक-कफ़ बुरदन-ए सद दिल पसंद आया
ब फ़ैज़-ए बे-दिली नौमीदी-ए जावेद आसां है
कुशायिश को हमारा `उक़द-ए मुश्किल पसंद आया
हवा-ए सैर-ए गुल आईना-ए बे-मिहरी-ए क़ातिल
कि अंदाज़-ए ब ख़ूं-ग़लतीदन-ए बिस्मिल पसंद आया
रवानियाँ -ए मौज-ए ख़ून-ए बिस्मिल से टपकता है
कि लुतफ़-ए बे-तहाशा-रफ़तन-ए क़ातिल पसंद आया
असद हर जा सुख़न ने तरह-ए बाग़-ए-तज़ डाली है
मुझे रंग-ए बहार-ईजादी-ए बेदिल पसंद आया